पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/४०२

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१४७३
दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

दिल्ली, पञ्जाव और वीच की घटनाएँ १४७३ के देशी सिपाहियों से हथियार रखा लिए, उन्हें किले से बाहर वारगों में भेज दिया और लाहौर के किले पर स्वयं कब्जा कर लिया। निस्सन्देह मॉण्टगुमरी के ठोक समय के साहस और उसकी फुरती ने पंजाब को कम्पनी के हाथों से निकल यदि पञ्जाब चला जाने से बचा लिया और समस्त क्रान्ति की जाता तो " भावी प्रगति पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला। सर जॉन लॉरेन्स लिखता है:- "यदि पक्षाब चला जाता तो हम अवश्य घरबाद हो जाते । उत्तरी प्रान्तों तक सहायता पहुँच सकने से बहुत पहले पहले समस्त अंगरेजों की हड्डियाँ धूप में पड़ी सूखती होती । इङ्गलिस्तान कभी उस श्राफ़त से न पनप सकता था और न एशिया में फिर से अपनी सत्ता को कायम कर सकता था 1"* फ़ीरोज़पुर में कम्पनी का एक बहुत बड़ा मैगज़ीन था । १३ मई को यह देखने के लिए कि वहाँ के सिपाहियों फीरोजपुर में के भाव क्या हैं, अंगरेजों ने उन्हें परेड पर क्रान्ति बुलाया। सिपाहियों का व्यवहार इतना सुन्दर रहा कि अंगरेज़ अफसरों का सन्देह उन पर से जाता रहा। किन्तु उसी दिन चन्द घण्टे बाद फीरोज़पुर के सिपाहियों ने क्रान्ति शुरू

  • "Had the Punjan gone, we must have been ruined. Long before

reinforcements could have reached the upper provinces, the bones of all Englisbrmen would have been bleaching in the sun. England could never have recovered from the calamity and retrieved her power in the East."- Lifeof Lord Lawrence, vol. ii, p. 335.