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दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

दिल्ली, पंजाब और वीच की घटनाएँ , १४७8 ' फ़ौज इस तरह अचानक बिगड़ी कि गोरी सेना कर्तव्यविमूढ़ हो गई । जालन्धर के सिपाहियों ने वहाँ के अंगरेजों के संहार करने में अपना समय नष्ट नहीं किया। वे तुरन्त दिल्ली की ओर चल दिए। जालन्धर के सिपाहियों ने अपने में से एक सवार फ़िलौर के सिपाहियों को सूचना देने के लिए भेजा । उसी समय फ़िलौर की देशी पलटनें भी बिगड़ खड़ी हुई । इसके बाढ़ जातन्धर के सिपाही फ़िलौर पहुँच गए । दोनों जगह की पतएक दूसरे से गले दमिर्नी और फिर दिल्ली की ओर बढ़ चलीं । मार्ग में सतत नदी थी। जिसके उस पार लुधियाने का सगर था । लुधियाने के आइरेज़ अफसरों को जालन्धर और फ़िलौर के विद्रोह का पता लगने से पहले ही वहाँ के देशी सिपाहियों को इसकी सूचना मिल गई। लुधियाने के इरेज़ अफ़सरों ने सतल के ऊपर का किश्तियों का पुल तोड़ दिया । गोरी और सिख पलटनें और महाराजा नाभा की कुछ पलटने सतलज नदी के ऊपर फिलौर से जाने वाली क्रान्तिकारी सना को रोकने के लिए जमा हो गई। क्रान्तिकारियों को जब इसका पता चला तो उन्होंने रात्रि के समय चुपचाप चार मील ऊपर से सतलज को पार करना चाहा । किन्तु अभी उनमें से - कुछ ही पार पहुँच पाए थे कि अंगरेजों और सिखों ने उन पर तोप के गोले बरसाने शुरू कर दिए । रात के क़रीब दस बजे थे, चाँद के निकलने में अभी दो घर बाकी थे। अंधेरे में क्रान्ति कारियों को यह भी पता न चलता था कि शत्रु की सेना किस ओर है। उनकी तोपें भी अभी नदी को पार न कर पाई थीं, फिर भी