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भारत में अंगरेज़ी राज

१८० भारत में अंगरेजी राज उसी हालत में ये दो घण्टे शत्रु का मुकाबला करते रहे । इतने में किसी सिपाही की पक गोली अंगरेजी सेना के कमाण्डर विलियम्स हैं की छाती में जाकर लगी। वह वहीं पर ढेर हो गया। इसके बाद सुबह तक घमासान संग्राम होता रहा। अन्त में सिखों और अंगरेजों को पीछे हट जाना पड़ा । विजयी क्रान्तिकारियों ने दोपहर के समय लुधियाने में प्रवेश किया 1 लुधियाने का नगर पड़ाव में क्रान्ति का एक विशेष केन्द्र था। नगर भर में उस दिन सर्वत्र क्रान्ति थी । जेलखाना तोड़ दिया गया, अंगरेज़ी मकान जला दिए गए, सरकारी ख़जाने पर क़ब्ज़ा कर लिया गया । इसके पश्चात् जालन्धर, फ़िलौर और लुधियाने की सेना मिल कर स्वाधीनता के उस युद्ध में भाग लेने के लिए दिल्ली की ओर रवाना हो गई । सन् ५७ की क्रान्ति में पक्षाघ की ओर से यही मुख्य सहायता थी। पचाव के शासकी को उस समय सबसे अधिक सन्देह पूरवीं प्रान्तों के रहने वालों पर था, जिन्हें पचाव में ‘’ हिन्दोस्तानियोंकहते हैं विप्लव ‘हिन्दोस्तानी’ । इसलिए के शुरू के दिनों में पवाब के अनेक शहरों और ग्रामों से सहस्त्र निष और प्रतिष्ठित ‘हिन्दोस्तानियाँ' को ज़बरदस्ती पंजाब से निर्वासित कर सत के इस पार भेज दिया गया । इसके बाद पश्ताव के अंगरेज़ों क लिए अपने यहाँ की गोरी और सिख सेनाओं को दिली विजय करने के लिए भेजना और भी आसान हो गया 1