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भारत में अंगरेज़ी राज

९४२ भारत में अंगरेजी राज दे जातीं तो इसमें श्रएमात्र भी सन्देह नहीं हो सकता कि अंगरेजों के लिए दिल्ली फिर से विजय कर सकना सर्वथा असम्भव होता । और भारत को भूमि से अंगरेजी राज की जड़ें उस समय बास्तब में निकल कर फिंक गई होतीं । यदि पटियाला, नाभा और झींद तटस्थ भी रहते तो भी परिणाम अंगरेजी राज के लिए शायद इतना ही श्रहितकर होता । किन्तु जनरल पेनसन और अंगरेजी या दोनों के सौभाग्य से इन तीनों रियासतों ने उस समय भारतीय क्रान्तिकारियों के विरुद्ध अंगरेजों को धन, जन और माल तीनों की भरपूर सहायता दी । सर जॉन लॉरेन्स और उसके साथियों की नीतिज्ञता के कारण ऐनसन को अपने साथ के लिए पक्षाघ से पर्याप्त अंगरेजी सेना भी मिल गई। घवाले से दिल्ली का रस्त अब जनरल एनसन के लिए साफ़ हो गया और दिल्ली के क्रान्तिकारियों को पचाव से और अधिक सहायता मिल सकना असम्भव हो गया। पटियाले के राजा ने अपनी सेना और तोपख़ाना भेज कर थानेश्वर की रक्षा की । झींद के राजा ने पानीपत की रक्षा का भार अपने हाथ में लिया। इसके बाद कमाण्डरइन-चीफ़ ऐनसन अंगरेज़ी और सिख । सेना सहित, जिसमें वहत सी सेना इन्हीं तीन कमाण्डर-इन , रियासतों की थी, २५ मई को अम्बाते से दिल्ली चीफ़ ऐनसन की की योर रवाना हुआ 1 तथापि जनरल ऐनसन का हृदय उस विकट परिस्थिति में भीतर से