पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
११४१
भारतीय शिक्षा का सर्वनाश

भारतीय शिक्षा का सर्वनाश ११४१ 2. उपयोग यही है कि उसे केवल अंगरेजी शिक्षा के उपर नर्ज किया जाय t & मैकॉल के विचारों और उन पर लॉर्ड चेरिटस के फैसले के नतीजे को बयान करते हुए ५ जुलाई सन् १८३ को प्रसिद्ध इतिहास लेखक प्रोफ़ेसर एच० पच० विलसन ने पार्लिमेण्ट की सिलेक्ट कमेटी के सामने कहा “वास्तव में हमने अंगरेजी पढ़े लिख़ों की एक पृथक जाति बना दी। है, जिन्हें कि अपने देशवासियों के साथ या तो ज़रा भी सहानुभूति नहीं है और यदि है तो बहुत ही कम ।’ अंगरेजी भाषा और अंगरेजी साहित्य की शिक्षा के साथ साथ जहाँ तक हो सके देशी भाषाओं को दबाना भी दरों मेपी मैकॉले और बेरिट दोनों का उद्देशा था । इति का दान हास लेखक डॉक्टर डफ़ ने, इस विषय में वेरिट और मैकॉले की नोति की सराहना करते हुएतुलना के तौर यह दिखलाते हुए कि जब कभ प्राचीन रोम निवासी किसी देश को विक्रय करते थे तो उस देश की भाषा और साहित्य को यथा शक्ति दा कर बहाँ के उच्च श्रेणी के लो में रोमन भपा, ।

  • " . . . all the funds appropriated for the purposes of education

would be best employed on Englist education alone. "Lord Bentieks Resolutiondated 7th March, 1836.

  • . . . we created a separate este of English scholars, एwho had

no longer any sympntlays, or very little dynath with their countrymen, "-- Prof. I, I, wilson before the Select Committee of the House of Lords, 5th July, 1868.