पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/४२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४८७
दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

दिल्ली, पक्षाघ और वीच की घटनाएँ १४८७ दण्ड 'दास्लंाने ग़द' में लिखता है कि अकेले चूड़ीवालों के मोहल्ले के पक W कारख़ाने में सात सौ सन बाकद रोज़ाना तैयार होती थी। सम्राट बहादुरशांइ प्राय: हाथी पर बैठ कर नगर में निकला करता था। और जनता तथा सिपादियां को गोहत्या कड़ा पर प्रोत्साहित करता रहता था । एलान किया जा चुका था कि जो मनुष्य गोहत्या के अपराध का भागी होगा उसके हाथ काट लिए जायेंगे या उसे गोली से उड़ा दिया जायगा 1 वास्तव में गोहत्या के विषय में इस प्रकार की प्राशा सम्राट पावर के समय से चली आती थी। धर्मान्ध या अदूरदर्शीf औरड्रॉय तक ने इस हितकर श्राशा पर अमल कायम रक्खा था। किन्तु दिल्ली और उसके आस पास के इलाके में कम्पनी का रा जमने के समय से गोरी सेना के प्रहार के लिए फिर से गोहत्या शुरू हो गई थी। ऊपर एक अध्याय में लिखा जा चुका है कि मधु और दोआब के इलाके में इसके कारण भयर असन्तोष उत्पन्न हो गया था । यही कारण था कि सम्राट बेहादुर शाह में फिर को वास्तविक सत्ता हाथ लेते ही एक बार उंस तीन सौ वर्ष की पुरानी आझा को दोहराना पड़ा। . है. क्रान्ति के प्रारम्भ में दिल्ली के स्वाधीन होते ही सम्राट बहादुरशाह की ओर से एंक पलाम समस्त सम्राट बहादुरशाह भारत में प्रकाशित किया गया, जिसके कुछ के एलान वाक्य ये थे . “ए हिन्दोस्तान के फ़रज़न्दो ! अगर हम इरादा कर दें तो बात की बात