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दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

दिल्ली, पझाव और वीच की घटनाएँ १४8 ने जितनी बरकतें इन्सान को श्रता की हैं, उनमें सबसे क्रीमती यरकत

  • ‘आाादी ' की है। क्या वह ज्ञाजिम नाकस जिसने धोखा दे देकर यह

बरकत हमसे छीन ली है, हमेशा के लिए हमें उससे महरूम रख सकेगा ? क्या ख़ुदा की मरजी के ख़िलाफ़ इस तरह का काम हमेशा जारी रह सकता है १ नहींनहीं ! फ़िलियों ने इसने जुल्म किए हैं कि उनके गुनाहों का प्यास्ता लिया हो चुका है । यहाँ तक कि अब हमारे पाक माहब को नाश करने की नापाक प्रवाहिश भी उनमें पैदा हो गई है ! क्या तुम अब भी ग्रामोश बैठे रहोगे ? झूदा अब यह नहीं चाहता कि तुम ख़ामोश रहो। क्योंकि उसने हिन्दू और मुसल मार्गों के दिलों में अंगरेज़ों को आपने मुल्क से बाहर निकालने की ख़्वाहिश पैदा कर दी है और पैंदा के फ़ज़ल और तुम लोगों की बहादुरी के प्रताप से जल्दी ही अंगरेजों को इतनी कामिस्त शिकस्त मिलेगी कि हमारे इस मुल्क हिन्दोस्तान में उनका ज़रा भी निशान न रह जाया ! हमारी इस फ़ौज में छोटे और बड़े की तमी भुला दी जायगी और सबके साथ बराबरी का बरताव किया जायगा, क्योंकि इस पाक जल में अपने धर्म की रक्षा के लिए जितने लोग तलवार खींचेंगे वे सब एक समान यश के भागी होंगे । वे सब भाई भाई हैं, उनमें छोटे बड़े का कोई भेद नहीं। इसलिए मैं फिर अपने तमाम हिन्दी भाइयों से कहता हूँ, उठो और ईश्वर के के बताए हुए इस परम कर्त्तव्य को पूरा करने के लिए मैदान जन्न में कूद पो !’ 8 बहादुरशाह का यह असली एलान उर्दू में था । हमें दुख है कि हमें उसकी उर्दू प्रति नहीं मिल सकी । स्वाधीनता के इस युद्ध के सम्बन्ध के इस तरह के सथ पाँ और एलाओं को अंगरेजों ही के अनुवादों या प्रति लिपियों से हिन्दी में अनुवाद करना पड़ा है लेखक ।