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भारत में अंगरेज़ी राज

१४७२ भारत में अंगरेजी राज किन्तु अंगरेजों के सौभाग्य से ठीक संकट के समय एक और नई सेना पझाव से सहायता के लिए श्रा पहुँची। अंगरेजों की क्रान्तिकारियों के लिए अब कार्य इतना सरल न सहायता के लिए नई सेना रहाफिर भी वे शाम तक मैदान में डटे रहे। के अन्त म दोनों ओर की सेनाएँ युद्धक्षेत्र से पीछे इट गई । वास्तव में जोड़ बराबर का रहा और दोनों सेनाओं के दिलों में एक दूसरे की वीरता के लिए श्रद्र उत्पन्न हो गया। इसमें कुछ भी सन्देह नहीं हो सकता कि यदि सिखों ने अंगरेजों का साथ न दिया होता और नई पचाबी सेना सिखों को श्रेय सिप्ला 1व समय पर सहायता के लिए न पहुँची होती, तो २३ जून सन् १८५७ को दिल्ली की सील के नीचे कम्पनी की सेना का सर्वनाश होगया होता, और फिर भारत में अंगरेजों का अपनी सता कायम रख सकना लगभग असम्भव था । २ जुलाई सन् ५७ को मोहम्मदवख्त काँ के अधीन रुहेलखण्ड की सेना ने दिल्ली में प्रवेश किया 1 नगर सेनापति बख़्त ख़ाँ निवासियों बहादुरशाह और सम्राट की ओर ई की क्रान्तिकारी से इस सेना का विशेष स्वागत हुआ । वख्त ख़ाँ ने सम्राट से भेंट की। इस बीच दिल्ली में स्थान स्थान की फ़ौज के आने के कारण प्रबन्ध की कुछ शिथिलता दिखाई देने लगी थी । सेनापति मिरज़ा मुग़ल में सुशासन स्थापित करने की योग्यता दिखाई न देती थी। अनेक शिकायतें सम्राट के कानों तक पहुँचों । बूढ़े सम्राट ने अपने पुत्र मिरज़ा मुग़ल को हटा कर सना।