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भारत में अंगरेज़ी राज

११४२ भारत में अंगरेजी राज रोमन साहित्य और रोमन आचार विचार के प्रचार का प्रयत्र ; करते थे, साथ ही यह दर्शाते हुए कि यह नीति रोमन साम्राज्य में के लिये कितनी हितकर साबित हुई, अन्त में लिखा है- ‘ईं x ” मैं यह विचार प्रकट करने का साहस करता हूं कि भारत के प्रवर अंगरेजी भाषा और अंगरेजी साहित्य को फैलाने और उसे उमति देने का लॉर्ड विलियम बेरिट का क़ानून xxx भारत के अन्दर , अंगरेछी राज के अब तक के इतिहास में कुशल राजनीति की सब से ज़बरदस्त और पूर्व चात स्वीकार की जायगी ।’8 डॉक्टर डफ़ ने अपने से पूर्व के एक दूसरे अंगरेज़ विद्वान के विचारों का समर्थन करते हुए लिखा है कि भाषा का प्रभाव इतना ज़बरदस्त होता है कि जिस समय तक भारत के अन्दर देशी नरेशों के साथ अंगरेजों का पत्र व्यवहार फ़ारसी भाषा में होता रहेगा, उस समय तक भारतवासियों की भक्ति और उनका प्रेम दिल्ली क सम्राट की ओोर बराबर बना रहेगा । लॉर्ड चेरिट के समय तक देशी नरेश के साथ कम्पनी का समस्त पत्र व्यवहार फ़ारसी भाषा में हुआ करता था ५ बेरिटक पहला गबरनर जनरल था, जिसने यह आशा दे दी और नियम कर दिया कि भविष्य में हैं

  • + . . . . . I venture to hazard the opinion, that Lord William

Bentinck's double nct tor the encouragement and difusion of the English language and English literature in the East, . . . . the grandest master stroke of sound policy that has yet characterized the administration of the British Government in India. "-Dr. Dufi, in the Lords Committee's Second Report on Indian Territories, 1853, , 409.