भारतीय शिक्षा का सर्वनाश ११४३ समस्त पत्र व्यवहार फ़ारसी के स्थान पर अंगरेज़ी भाषा में हुआ करे । इतिहास से पता चलता है कि आयरलैण्ड के अन्दर भी आइरिश भाषा को दवाने और यदि "सम्भव हो तो श्राइरिश लोगों को अंगरेज़ बना डालने के लिए" बहाँ की अंगरेज़ सरकार ने समय समय पर अनेक अनोखे कानून पास किए । यद्यपि सन् १८३५ के बाद से अंगरेज़ शासकों का मुख्य लक्ष्य भारत में अंगरेज़ी शिक्षा के प्रचार की भोर ही लॉर्ड मैकॉले को रहा, फिर भी 'नोरियरंटलिस्टऔर ‘यूॉक्सि रिपोर्ट डेण्टलिस्ट' दोनों दलों का थोड़ा बहुत विरोध इसके बीस वर्ष बाद तक भी जारी रहा । अंगरेज़ शासक भारत वासियों को किसी प्रकार की भी शिक्षा देने में बराबर सोच करते रहे । यहाँ तक कि लॉर्ड मैकॉले की सन् १८३५ की रिपोर्ट २६ वर्ष बाद सन् १८६४ में पहली बार प्रकाशित की गई । किन्तु अन्त में पाला अंगरेजी शिक्षा के पक्षवालों का ही भारी रहा । भारत के अंगर शासकों की शिक्षा नीति और वर्तमान अंगरेजी शिक्षा के उद्देश को स्पष्ट कर देने के लिएहम अंगरेज़ी शिक्षा के एक प्रबल और मुख्य पक्षपातो लॉर्ड मैकॉल के बहनोई सर चाल्र्ड ट्रेवेलियन के उन विचारों को नीचे उद्धत करते , जो देवेलियन स१८५३ को पालिंमेण्टरी कमेटी के सामने पेश किए।
- ‘or the purpose of changing lishmen into aglishmen, if that were
imossible. "-Professor H. Holman in his English Natioual tration, p, 50