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भारत में अंगरेज़ी राज

१५१६ भारत में अंगरेज़ी राज उन्होंने स्वयं अमृतसर से अजनाले जाकर इस घटना की तसदीक की । अजनाले का एक बूढ़ा मनुष्य बाबा चाया जगतसिंह जगतसिंहजिसकी आयु स्वाधीनता के युद्ध में का बयान करीघ बीस वर्ष की थी, इस समय ( सितम्बर १६२८) जीवित है और पूरी तरह सचेत है । बाबा जगतसिंह ने यह समस्त घटना अपनी आंख से देखी थी । वावा जगतसिंह का कलमघम्द बयान हमारे पास मौजूद है । उसमें और कूपर के बयान में मुख्य बातों में कोई अंतर नहीं है । वह कुआं भी, जिसके अन्दर २८२ लाशें फेंकी गई थीं, अभी तक मौजूद है । उसके ऊपर एक ऊँच मट्टी का टीला है। अजनाले में इसे अभी तक ‘काल्याँदा-खूह' कहते हैं। पुलिस का थाना भी, जिसके सामने सिपाहियों को मारा गया था और तहसील की वह इमारतजिसके एक गुम्बद में ४५ सिपाही घुट कर मर गए अभी तक मौजूद है। इस गुम्बद को अभी तक धहां के लोग काल्यां दा बुर्जकहते हैं । बाबा जगतसिंह का बयान है कि अजनाले के उस समय के तहसीलदार का नाम प्राणनाथ था और जो लोग कुएँ के अन्दर एक दूसरे के ऊपर डाले गए उनमें से कुछ जीवित थे और चिल्ला रहे थे । इस शोकजनक 'घटना से हट कर अब हम राजधानी दिल्ली की ओर आते हैं । दिल्ली के अन्दर इस समय क्रान्तिकारियों का मुख्य कार्य यह था कि वे बार बार नगर से निकल कर दिल्ली में कभी दाएँ से और कभी बाएँ से अंगरेजी सेना अंगरेजी सेना अंगरेजी सेना पर हमला करते थे, अंगरेजी सेना को काफ़ी