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दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

दिल्ली, पश्चाव औौर वीच की घटनाएँ १५१७ चुक़सान पहुँचा देते थे और फिर पीछे को इटते जाते थे । अंगरेजी x सेना उनका पीछा करती थी। जब अंगरेजी सेना शहर फ़सील के ठीक नोचे श्रा जाती थी, सीत के ऊपर की तोप उन पर इस शुरी तरह गोले बरसाती थीं कि कम्पनी के सिपाही दीवार के नीचे चनों की तरह भुनने लगते थे । इस प्रकार कई बार में कम्पनी की सेना के इतने अधिक आदमी मारे गए कि जनरल बिलसन ने विवश होकर झाझा दे दी कि श्राइन्द किसी सूरत में भी क्रान्ति कारी सेना का पीछा न किया जाय । अंगरेज़ी सेना की स्थिति इस समय काफ़ी शोचनीय थी। जब कि एक ओर अंगरेज़ी सेना को नगर में घुसने का साहस म होता था, दूसरी और क्रान्तिकारी सेना को क्रान्सिफारियों में भी इस बात का साहस न हुआ कि एक बार अनुशासन की शहर से निकल कर मैदान में डट कर अंगरेज़ी सेना को ख़त्म कर दे । कारण केवल यह था। कि जब कि दिल्ली की सेना में वीरता, संख्या या सामान किसी की कमी न थी, दिल्ली के अन्दर कोई एक ऐसा योग्य और प्रभाव शाली नेता न था जो प्रान्त प्रान्त की सेनाओं को सफलता के साथ अनुशासन में रख सके और उन सब को मिलाकर एक निर्णायक संग्राम के लिए आगे बढ़ा सके । सम्राट बहादुरशाह बहुत बूढ़ा था और स्वयं सेनापतित्व ग्रहण करने के असमर्थ था। शहज़ादा मिरज़ा मुग़लत अयोग्य साबित हो चुका था । सेनापति घख़्त नाँ उस समय क्रान्तिकारी सेनापतियों में सब से अधिक योग्य और कमी