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भारत में अंगरेज़ी राज

१२० भारत में अंगरेज़ी रा निस्सन्देह यह हसरत से भरा हुआ पत्र दिल्ली के अन्तिम सम्राट बहादुरशाह की समस्त भारतवर्ष के प्रति शुभेच्छा और दे उसकी उद्दारता,ोनों का दर्पण है। किन्तु सन्दिग्ध हृदय भारतीय नरेशो पर इसका य6च्छ प्रभाव न पड़ सका। इस बीच जनरल निल्सन के अधीन और नई सेना ने पवाब से जाकर कम्पनी की सेना म नई जान डाल कम्पनी को नई दी । यह स्मरण रखना चाहिए कि इस समय मदद जो कम्पनी की सेना दिल्ली के बाहर थी, उसमें अंगरेज की अपेक्षा हिन्दोस्तानियों को संख्या कई गुनी थी। इन हिन्दोस्तानियों में अधिकतर दिखगोरखे और कुछ अन्य पजाबी थे । फिर भी अगस्त के अन्त तक क्रान्तिकारी संना वार बार- कम्पनी की सेना पर हमला करती रही, किन्तु कम्पनी की सेना शहर फ़सील के के निकट आने की हिम्मत न कर सकी। २५ अगस्त को सिपहसालार बन खाँ ने फिर एक बार अपनी पूरी ताकत से अंगरेजी सेना पर हमला किया। नीमच की सेना दिल्ली के अन्दर उस समय दो सेनाएँ मुख्य थीं। एक घरेती की और दूसरा नीमच की । क्रान्तिकारियों के दुर्भाग्य से इन दोनों सेनाओं में काफ़ी वैमनस्य और प्रतिस्पर्धा | उत्पन्न हो गई थी। बख़्त खाँ ने इन दोनों सेनाओं को मिला कर रखने का यथाशक्ति प्रयल किया। २५ अगस्त को ठीक उस समय

  • Story of the Sirgy f Delhi, by an Oficer who served there.