पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/४६६

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१५३१
दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

दिल्ली, पखाव औौर वोच को घटना १५३१ जनरल बिलसन और कतान हडसम की राय थी कि सम्राट . बहादुरशाह को तुरन्त मार डाला जाय। किन्तु अभी तक अधि कांश बिप्लबकारी भारत अंगरेजों के वश में न चाया था। इसलिए अन्य अनेक अंगरेज अफसरों की राय इसके विरुद्ध थी। अन्त में वहापुरशद को केवल केंद्र कर दिया गया । सम्राट बहादुरशाह की गिरफ्तारी के बाद बहादुरशाह के दो और बेटे मिरज़ा मुगल और मिरजा अनज़र शहज़ारों की हत्या सुलतान और एक पोता मिरजा अबूबकर हुमायूं के मतव में बाकी रह गए थे । कुछ अंगरेज इतिहास लेखकों का घयाम है कि इन लोगर्ग ने विप्लव के शु के दिनों में अंगरेज औौरतों और वर्षों की हत्या में भाग लिया था । मिरज़ा इलाहीबख्श ने हडसन को सूचना दी कि ये लोग अभी तक मक़बरे में मौजूद हैं। हडसन तुरन्त फिर मक़बरे की ओर लौटा 1 तीनों शाहज़ों को कैद कर लिया गया। मिरजा इलाहीबख्श ने शहजाद को समझा कर इस कार्य में पूरी मदद दी। शहजाों को रथ में सवार करा कर हडसन अपने सवारीमिरज़ा इलाहीबख़्स और उसके दो मुसाहिबों सहित शहर की ओर चला। जय शहर एक मील रह गया तो मैं हडसन ने रथों को ठहराया, तीनों शहजाद को राँ से उतरने के लिए कहा, उनके कपड़े उतरवाए और फिर अचानक अपने एक सिपाही के हाथ से बन्दूक लेकर उन तीनों को तीन फायर में यहीं पर ख़त्म कर दिया ! गोलियाँ तीनों शहजादों की छाती में लगे मीर वे ‘हाय दगा ।’ कह कर वहीं ठण्ढे होगए । मिरज़ा इलाही