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दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

दिल्ली, पजाब और चीन की घटनाएँ १२७ इसके बाद के दिल्ली के संग्रा को इतने विस्तार के साथ वर्णन करने की श्रावश्यकता नहीं है । क्रान्ति चप्पा चप्पा कारियों की घोर अव्यवस्था बढ़ने लगी। कुछ भूमि पर संग्राम सेना तुरन्त दिल्ली छोड़ कर चल दी और कुछ १५ सितम्बर से २४ सितम्बर तक दिल्ली की एक एक बप्पा भूमि के लिए शत्रु के साथ संग्राम करती रही । इन संग्रामों में कम्पनी की सेना के करीब चार हज़ार मनुष्य मारे गए। क्रान्तिकारियों के हताहतों की संख्या इससे कुछ अधिक बताई जाती है। धीरे धीरे तीन चौथाई नगर कम्पनी के कब्ज़े में प्रा गया। इस पर १8 सितम्बर की रात को बख़्त ख़ाँ सम्राट को खम्राट बहादुरशाह से भेंट लिए गया करने के । घनस ख़ का। उसने सम्राट को हिम्मत दिलाई और कहा कि बिल्ली हाथ से निकल जाने पर भी हमारा कुछ अधिक नहीं बिगड़ा, तमाम मुल्क में आग लगी हुई है, श्राप अंगरेजों से हार स्वीकार न कीजिएआप मेरे साथ द्विसुली से निकल चलिएकई अन्य स्थान सामरिक दृष्टि से दिल्ली की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण हैं, इनमें से किसी पर भी जम कर हमें युद्ध जारी रखना चाहिए । मुझे विश्वास है कि अन्त में हमारी विजय होगी सम्राट बहादुरशाह बख़्त क़ाँ की बात पर करीब करीब राज़ी हो गया, और उसे अगले दिन सवेरे फिर मिलने के लिए बुलाया । दूसरी और अंगरेज़ों ने अपने गुप्त सहायक मिरज़ा इलाहीबख्शा पर इस बात का ज़ोर दिया कि तुम किसी प्रकार बादशाह को ग्रवासन