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भारत में अंगरेज़ी राज

१५२८ भारत में अंगरेजी राज दिल्ली से बाहर जाने से रोक लो 1 इस कार्य के लिए मिरज़ा इलाही बख्श से बहुत बड़े इनाम का वादा किया गया । चुनाँचे आज तक मिरज़ा इलाहीबख़्श के वंशजों को बारह सौ रुपए माहवार पेनशन मिलती है। बत ख़ाँ क चले जाने के वाद मिरज़ा इलाहीबख़्श ने सम्राट को समझाया कि - बव्रत ख़ों चौर “विप्लव के सफल होने की आय कोई प्राशा नहीं मिरज़ा इलाहीबख्श ' ' हो सकतीबहत न के साथ जाने में प्रापको सिवाय कष्टों और हानि के कुछ न मिलेगाऔर यदि आप यह रह जायेंगे तो मैं वादा करता हूँ कि अंगरेजों से मिल कर सब यातों की सफाई करा ढूंगा, नाप और यापक कुटुम्बियों पर किसी तरह की आंच न जाने पाएगी ।’ अगले दिन सवेरे बहादुरशाह हुमायूं के मकबरे में गया। वर्द्धत खाँ को वहीं पर मिलने के लिए बुलाया गया । मक़बरे के पूर्व की भोर जमन की रेती में बख़्त ख़ाँ की फ़ौज पड़ी हुई थी। पूर्व की औोर के दूरबाज़े से ही बख़्त खाँ बहादुरशाह से मिलने के लिए मक़बरे में आया । बढ़त खाँ ने बहादुरशाह को फिर समझाया। लिखा है कि बस खाँ बहादुरशाह को अपने साथ ले जाना चाहता था, बहादुरशाह बख़्त ख़ाँ के साथ जाना चाहता था, और मिरज़ा इलाहीबख्श बहादुरशाह को रोक लेने के दाँव पेच खेल रहा था। अन्त में मिरज़ा इलाही बख्श ने जब देखा कि और कोई चाल नहीं चल सकती तो उसने वक़्त ख़ाँ पर यह इलज़ाम लगाया कि बख़्त क़ाँ कि पठान है बह मुग़लों से अपनी क़ौम