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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी रा २६ जुलाई सन् १७ को हैवलॉक ने कानपुर से निकल कर गड्रा को पार किया । यह उस समय लखनऊ के ? जनरत हैवलॉक अंगरेजों को सहायता पहुँचाने के लिए आतुर की लखनऊ यात्रा था 1 कानपुर से लखनऊ का फ़ासला ४५ सील से कम है । हैवलॉक को पूरा विश्वास था कि मैं दो चार दिन के अभ्ट्र ही लखनऊ पहुँच जाऊँगा । उसके साथ डेढ़ हज़ार फ़ौज और तेरह तोप थीं । किन्तु ज्योंही गड्रा को पार कर हैबलॉक ने अवध की भूमि में ‘प्रवेश किया, उसे मालूम हुआ कि लखनऊ तक पहुँच सकना इतना सरल नहीं है ! प्रबध की एक पक चप्पा ज़मीन में स्वाधीनता की ग्राग दहक रही थी। एक एक ज़मींदार ने अपने अधीन सौ सौ, दो दो सौ था श्रधिक मनुष्य जमा करके हैबलॉक को रोकने का निश्चय कर लिया। मार्ग में प्रत्येक ग्राम के ऊपर स्वाधीनता का हरा झएडा फहरा रहा था 1 हैबलॉक को पहली लड़ाई उन्नाव में लड़नी पड़ी। बहाँ से ज्यों स्यां कर हैवलॉक भागे चढ़ा । दूसरा संग्राम वशीरतग में हुथा। ये दोनों संग्राम २६ जुलाई ही को लड़े गए । हैवलॉक की सेना का छठा वहिस्सा इन लड़ाइयों में ख़त्म हो गया। ३० जुलाई को हैबलॉक ) को वशीरतग से पीछे हट कर अपनी सेना सहित सहूलबार में ‘आकर ठहरना पड़ा । दूसरी ओोर नाना साहब को जब यह पता चला कि हैवलॉक लखनऊ को ओर जा रहा है, उसने फिर एक बार कानपुर पर