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भारत में अंगरेज़ी राज

१५१ भारत में अंगरेजी राज अंगरेज़ी सेना में बहुत बड़ा अन्तर था । नील, ऊटरम, कूपर और नायर जैसे चार चार अनुभवी सेनापति इस समय हैबलॉक की। मदद के लिए मौजूद थे । ढाई हज़ार अंगरेज़एक रेजिमेण्ट सिखों की और बढ़िया तोप हैवलॉक के साथ थीं। दूसरी ओोर अवध के कई सरहदी ताल्लुकेदारों ,इस बीच इस विश्वास पर कि कम्पनी की सेना ने सदा के लिए अवध का प्रदेश छोड़ दिया, अपने अपने सैन्यल लखनऊ भेज दिए थे । फिर भी उन्नाव, बशीरतगत इत्यादि स्थानों पर अबध के ग्रामवासियों ने पूर्ववत् एक एक चप्पा ज़मीन पर कम्पनी की सेना का विरोध किया। किन्तु अकेले ग्रामवासी, जिनके पास शस्त्रों की भी कमी थी, कम्पनी की इस विशाल और उसन्नद्ध सेना का कहाँ तक मुकाबला कर सकते थे । समस्त मार्ग विरोधी ज़मींदारों और ग्रामनिवासिों की लाशों से पट गया । जिस गाँव के ऊपर हूं। झण्डा फहराता हुआ दिखाई दिया उसे जला कर खाक कर दिया गया । मार्ग की नदियाँ दोनों ओर के रक्त से रंग गई। अन्त में ज्याँ याँ कर मार्ग चीरते हुए २३ सितम्बर को कम्पनी की सेना लखनऊ के निकट नालमवाग नामक स्थान पर पहुँच गई। नालमबाग में क्रान्तिकारियों को एक पतटन ठहरी हुई थी। " दिन भर और रात भर और अगले दिन खूब आसमयानु का घमासान संग्राम हुथा। ठीक इस समय दिल्ली के पतन की ख़बर लखनऊ पहुंची, जिससे अंगरेजी सेना के हौसले और अधिक बढ़ गए। संग्राम