पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५०६

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१५५३
अवध और बिहार

अवध और बिहार १५५। २५ सितम्बर का प्रातःकाल हुआ । अंगरेज़ी सेना में नालम बाग से हट कर कुछ चक्कर से रेजिडेन्सी की ओर बढ़ना चाहा। लखनऊ की सेना ने मुड़ कर उन पर गोले बरसाने शुरू किएफिर भी अंगरेजी सेना गोलों की इस बोछार में से वीरता के साथ निकलती हुई चारबाग के पुल तक श्रा पहुँची । पुल के उस पार लखनऊ का शहर था 1 स्वभावत: चारबाग़ के पुल के ऊपर गौर अधिक भयकर संग्राम हुआ 1 क्रान्तिकारियाँ को सेना पुल के ऊपर गौर दूसरी छोर थी । दोनों ओर से ो के साथ गोले बरसने लगे । दोनों छोर के हताहतों की संख्या काफ़ी ऊँची पहुँच गई। जनरल हैबलॉक का एक पुत्र भी इस समय चोरता के के साथ लड़ रहा था। अंगरेज की ओर जान का नुकसान बहुत अधिक हुआ, फिर भी प्रान्त में अंगरेजी सेना अपनी और विपक्षी कt तारों के ऊपर से पुल को पार कर गई। दूसरी ओर भी एक एक कदम पर संग्राम जारी रहा । इन्हीं में से एक स्थान ख़ास बाज़ार में किसी क्रान्तिकारी की गोली जनरल नील की गरट्रम में जाकर लगी गौर जनरल नील यहीं पर ढेर हो गया । जनरल नील की मृत्यु अंगरेज़ी सेना के लिए एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य था, किन्तु अन्त में अंगरेज़ी सेना बढ़ते बढ़ते रेज़िडेन्सी के अन्दर पहुँच गई । रेज़िडेन्सी के अन्दर एक बार अंगरेजों के हर्ष की कोई सीमा न थी। १७ दिन के लगातार मोहासरे में रेजिडेन्सी के अन्दर सात सौ आदमो मर चुके थे । उस समय वहाँ फ़रीब पाँच सौ अंगरेज़ और चार सौ हिन्दोस्तानी मौजूद , जिनमें से अनेक