पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५१२

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अवध और बिहार

अवध और बिहार १५५४ लखनऊ का समस्त शहर उस समय रक्त के समुद्र में तैरता हुआ दिखाई देता था। रेजिडेन्सी के अंगरेज़ लखनऊ रक्त का कैद से रिहा हो गए । किन्तु समस्त शहर अभी समुद्र तक क्रान्तिकारियों के हाथौं में था। इस बीच 5 २८ नवम्बर को जनरल हैवलॉक की मृत्यु हो गई पर कॉलिन ' कैम्पबेल ने रेजिडेन्सी को छोड़ कर ग्राहमबाग में अपनी सेना और तोपों को जमा किया, ऊरम को यहाँ का सेनापति नियुक्त किया, और लखनऊ शहर पर हमले की तैयारी शुरू की। इतने में कैम्पबेल को समाचार मिला कि सांना साहब के प्रसिद्ध मराठा सेनापति तात्या टोपे ने कानपुर की अंगरेजी सेना को हरा कर फिर से उस नगर पर कब्जा कर लिया । कैम्पबेल ने अब अरस को लखनऊ के लिए छोड़ा और स्वयं कानपुर फिर से बिजय करने के लिए उस और चल दिया । अब हमें लखनऊ को छोड़ कर कुछ पीछे हट कर तात्या टोपे और सर कॉलिन कैम्पबेल के संत्राओं को वर्णन करना होगा । १६ जुलाई को जनरल हैबलॉक की सेना ने इलाहाबाद से आकर फिर से कानपुर विजय किया था । नामा समस्या टोपे ' हास्यटा साहब अपने भाई बालासाहबभतीजे रावसाहब, सेनाति तात्या टोपे, घर की स्त्रियों और ख़ज़ाने सहित १७ जुलाई को सबेरे बिटूर से निकल कर फतहपुर चला गया था। माना जनरल हैवलॉक पर फिर से हमला करने के लिए सेना जमा कर रहा था। तात्या टोपे को उसने शिवराजपुर भेजा। शिवराजपुर