१६२ भारत में अंगरेजी राज तीसरे दिन को लड़ाई और अंगरेज़ी सेना को पराजय को वर्णन करते हुए एक अंगरेज़ अफ़सर अपने पत्र में लिखता है- ' “श्रा के संग्राम का वृत्तान्त पढ़ कर आपको आश्चर्य होगा । इससे आचाप को मालूम होगा कि किस प्रकार अंगरेज़ सेना अपनी विजय पताकाओं अपने आदर्श वाक र अपनी प्रसिद्ध वीरता समेत पीछे हटा दी गई । उन भारतवासियों ने, जिन्हें हम तुच्छ सम रहे हैं और चिढ़ाते रहे हैं, अंगरेजी सेना से उसका कैम्प, उसका सामान और मैदान सब कुछ छीन लिया ! शत्रु को आप यह कहने का इ इन्त हो गया है कि फ़िरनी पिट गए। ये पिटे हुए फ़िरकी अपनी खाइों में लौट , उनके वेसे उलट दिए पएयसवाय छीन लिया गया, सामान ले लिया गया, ऊंट, हाथी, घोड़े और नौकर उन्हें छोड़ कर भाग गए । यह समस्त घटना घरयन्त शोकजनक और लमास्पद है !”6 इसी पराजय से विवश होकर सर कॉलिन कैम्पबेल को लखनऊ छोड़ना पड़ा था । तात्या टोपे ने समां सर कॉलिन चार पाते ही सर कॉलिन को मार्ग में रोकने के लिए गड्रा का पुल तोड़ दिया और गढ़ा के ऊपर तोपें लगा । फिर भी सर कॉलिन कैम्पबेल तात्या टोपे की तो से बच कर एक दूसरे स्थान से गड्री पार कर ३० नवम्बर को रा कानपुर के निकट पहुँच गया 1 इस समय तक नाना साहब भी तात्या टोपे की सहायता के लिए कानपुर पहुंच गया था । मलेसन लिखता है कि सेनापति की हैसियत से तात्या टोपे • Charles Bal's acian lusity, vol, i, p. 190