अवध यूर विहार १५६५ किन्तु उनके अन्दर एक उत्साह था जो ग्रातताइयों के उत्साह से भी कहीं ठ ' अधिक भयहर था- वे अपने पचिन उद्देश के लिए शहीद होने का दृढ़ सकरुप कर चुके थे । ईं हैं उनके मकान के अन्दर हाथ से बम फेंके गए । बाहर घुस जाता कर उन लोगों को धुएँ में जूट देने का प्रयल किया गया, जिससे वे बाहर निकल , किन्तु सब व्यर्थ हुना में सूर्यों के अन्दर से ये चित्रोही अपने प्राक्रामक़ों के अपर सतगातार ऑौर ज़ोरों के साथ लाग बरसाते रहे, उन्होंने उन्हें तीन घण्टे तक रोके रक्ग्रा आन्त में उस मकान को उड़ा देने का निश्चय किया गया ।” सकाम के उड़ने से उसके रक्षक को जिस ग्रश को श्रमिलापी थी, वह उन्हें प्राप्त हो गई । वे सथ शहीद हो गए थ्ौर खूब के सत्र उसी मकान के खण्डहरों में अफ़न हो गए । फरु खाबाद के नवाब ने अपनी स्वाधीनता का एलान कर रक्खा था । तय हुआ कि तीन ओर से बालपोल, फ़र्रुख़ाबाद का । सीटन और स्वयं कैम्पबेल के अधीन तीन सैन्य पतन दल पहुँच कर फ़र ख़ावाद की राजधानी फतहगढ़ को घेर लें। तहगढ़ में कई दिन तक घमासान संग्राम होता रहा । अन्त में १४ जनवरी सन् १४ को फतहगढ़ विजय कर लिया गया । नत्राव को कैद कर लिया गया। इतिहास लेखक फ़ॉर्ज मिचेल लिखता है कि फ़ ख़ावाद के मुसलमान नवाब को फाँसी देने से पहले उसके तमाम वदन पर सुश्रर की बरबी मल दी गई थी । नाना साहब का एक मुख्य सेनापति नादिर खाँ भी • alleson's ludia Metarty P orbeh-Mitchell's Entzzzlts