पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५२०

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१५६७
अवध और बिहार

अवध और बिहार १५६७ सना। सेना प्रब के मैदान रों में कभी दिखाई न दी थी। इस सेना में “अधिकतर ग्रंगरेज़, सिख और कुछ ग्रन्य पक्षावी थे। रसल लिखता है कि इस सेना ने मार्ग में अनेक गाँव के गाँव घासद से उड़ा दिए 10 किन्तु यह विशाल सना भी लखनऊ को फिर से विजय करने के लिये काफ़ी नहीं समझी गई । पश्चिम की देशद्रोहो नपाती ओर से यह सेना औौर पूर्व की ओर से एक विशाल गोरखा सेना सेनापति जइहादुर के आंधीन लखनऊ की ओर बढ़ी चली आ रही थी । एक स्थान पर लिखा जt चुका है कि क्रान्ति के शुरू ही में अंगरेज ने नैपाल दरबार से सहायता की प्रार्थना की थी। बहुत सम्भव है कि नेपाल युद्ध के समय ग्रवध के नवाब का कम्पनी को फ़रीब ढाई करोड़ रुपये की मदद देना नैपालियों के दिलों में खटक रहा हो और प्रबंध नि बालियों से बदला चुकाने का उन्हें यह एक अवसर दिखाई दिया हो । सघ से पहले अगस्त सन् १८५७ में तीन हजार गोरखा सेना पूर्व में आज़मगढ़ औौर जौनपुर पर उतर पाई । किन्तु क्रान्तिकारी नेताओं मांइम्मद हुसेनबेनीमाधव और राजा 4 नादिर खाँ ने सफलता के साथ इस सेना से लड़कर पूर्वीय आबध की रक्षा की । इसके बाद लिखा है, जहूबहादुर और अंगरेज में कुछ विश्hप समझौता हो गया । २३ दिसम्र १८५७ को ,००० नई गोरखा सेना जहूबहादुर • Russels Diar, p, 218.