पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१५६९
अवध और बिहार

अवध और बिहार १६४ की पदवी कम कर दी 1 इसके बाद दूसरी छोर से चक्कर खाकर ‘कम्पनी की सेना आगे बढ़ती रही । ११ मार्च सन् १८५८ को पश्चिम से कैम्पबेल की विशाल सेना और पूर्व से गोरखा और अंगरेजी सेनाएँ सघ लखनऊ के निकट ग्राकर मिल गई । लखनऊ शहर के अन्दर नवम्बर सन् ५७ से मार्च सन् १८ तक स्वाधीनता का युद्ध बराबर जारी था। लखनऊ शहर की अवध की अधिकांश प्रज्ञा और वहाँ के प्रायः परिस्थित्ति सब राजा, जमींदार और ताल्लुकदार सच्चे उत्साह के साथ इस युद्ध में शामिल थे । लॉर्ड सैनिकू ने सर जेम्स ऊटरम के नाम प पत्र में लिखा है कि जो राजा और ताल्लुकदार अंगरेजों के विरुद्ध युद्ध में भाग ले रहे थे उनमें से कम से कम श्रने ऐसे थे जिन्हें स्वयं अंगरेजी राज के बजाय हानि के लाभ हुना था, फिर भी ये लोग अंगरेजी राज के इस समय विकट शत्रु थे औौर नबाब विरजीत फ़दर और बेगम हजरतमहल के लिए अपने सर्वस्व की श्राहुति देने को उद्यत थे। इतिहास लेखक होम्ल लिखता है ‘अनेक राजा और छोटे छोटे सरदार ऐसे थे जो सदा रे सरकार के यध से अपने प्रापको मुक्त करने के लिए चिन्तित रहते थे । उन्हें स्वयं कोई विशेष हानि थी, न पहुँची किन्तु अंगरेजी सरकार का घटिव ही उन्हें सदा यह याद दिलाता रहता था कि इस एक पोजित फ्रीस के प्राइमरी हैं ।

  • SX भारस की लाखों जनता के दिलों में विदेशी सरकार की पर कोई