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भारत में अंगरेज़ी राज

५७२ भारत में अंगरेज़ी राज नाया । कुछ समय बाद स्वयं बेगम हजरतमहल शत्र धारण कर, घोड़े पर चढ़ करयुद्ध के मैदान में उतर पाई। किन्तु प्रापसी प्रति स्पर्धा औौर थव्यवस्था ने अब भी लखनऊ को क्रान्तिकारी सेना का साथ न छोड़ा। जिस समय सर कॉलिन कैम्पबेल आलमबाग पहुंचा, उस समय तक लखनऊ का समस्त नगर क्रान्तिकारियों के शहर की। हाथों में था। शहर के बाहर नालमबाग में। मोरचेयन्दो अंगरेजी सेना थी, और शहर के अन्दर क्रान्ति - । कारियों की ओर तीस हज़ार हिन्दोस्तानी सिपाही और पचास हज़ार सशत्र स्वयंसेवक जमा थे ।के एक एक गली और एक एक बाजार में नाकेबन्दी और मोरवेबन्दी हो रही थीघर । । हर की दीवारों में बन्दूकों के लिए मुराख़ बने हुए थे । हर मोरचे के ऊपर तोपें लगी हुई थीं । मइल के चारों तरफ तोप थीं । नगर के उत्तर की ओर गोमती नदी थt । शेष तीनों छोर मज़बूत किलेबन्दी थी। कैम्पबेल के प्रधोन उस समय गोरी और हिन्दोस्तानी मिलता | मैं कर क़रीव चालीस हजार अभ्यस्त सेना थी। तीसरी बार इससे पहले अंगरेजों ने जितने हमले लखनऊ पर। | किए थे उनमें से कोई भी उत्तर की ओर से न , की नदियों 7 ।ि हुआ था। सबसे पहले ६ मार्च को ऊटरम ने उस ओर से हमले की तैयारी शुरू की । सर कॉलिम कैम्पबेल के | पहुँचने के बाद उत्तर और पूर्व दो श्रर से हमला शुरू होगया । ६। ' ) ।

  • Sir Hope Grant.

लखनऊ म रत