पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५२६

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१५७३
अवध और बिहार

अवध और बिहार १५७३ मार्च से १५ मार्च तक खूब घमासान संग्राम जारी रहा । तीसरी बार लखनऊ की गलियों में रक्त की नदियां बहने लगूं । अन्त में दिल्ली के समान ही लखनऊ का भी पतन हुआ । अंगरेजी सेना ने एक दूसरे के बाद दिलखुशवानकदमरसूलशाहनज फ, बेगमकोठी इत्यादि मोरचों पर क़ब्ज़ा कर लिया1 १० मार्च को बह हडसन, जिसने दिल्ली के शाहजाद का खून पिया था, लखनऊ के संग्राम में मारा गया। १४ मार्च को अंगरेजी सेना ने लखनऊ के महल में प्रवेश किया । इतिहासलेखक विलखन लिखता है कि उस दिन की विजय का मुख्य श्रेय सिखों और दस नम्बरपलटन' को मिलना चाहिए । बेगम हजरतमलनवाब विरजीस क़दर और मौलवी अहमद शाह तीनों शहर से निकल गए। अहमदशाह ने शह।दतगंज की थोड़ा सा चक्कर देकर अपने मुट्ठी भर श्रादमिय सहित फिर एक बार दूसरी ओर से लखनऊ में प्रवेश किया 1 लखनऊ के मोहल्ले शहादतगंज में पहुँच कर श्रदर्द शाह ने नए सिरे से विजयी अंगरेजी सेना से मोरचा लिया। अहमदृशहू के पास इस समय केवल दो तप रह गई थीं। दो पलटनें अहमदशाह के मुकाबले के लिए भेजी गई । अंगरेज इतिहास लेखक लिखते हैं कि मौलवी अहमदशाह ने उस दिन पूर्व बीरता के साथ युद्ध कियाशशु को प्रगणित जनों की हानि पहुंचाई, और अन्त में विजय सम्भव देख बद्द फिर लखनऊ से निफरत गया । शहादतग की लड़ाई लखनऊ की अन्तिम लड़ाई संग्राम