पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५३२

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१५७७
अवध और बिहार

अवध औौर विहार १५७७ । लखनऊ के पतन के बाद भी अवध के कई भागों औौर हिन्दोस्तान के अन्य अनेक प्रान्तों में ग्रुद्ध बराबर जारी रहा। यद्यपि विहार में सन् ५७ का स३ठन श्रवध और दिल्ली जैसा न था, फिर भी उस प्रान्त में क्रान्ति के कई बिहार में क्रान्सि महत्वपूर्ण केन्द्र थे । विशेषकर पटने में एक का आयोजन जबरदस्त केन्द्र था, जिसकी शाखाएँ प्रान्त में चारों ओोर फैली हुई थीं । सन् ५७ से पूर्व पटने में चेक गुप्त सभाएँ हुआ करती थीं। बहाँ की पुलिस इस सझठन में शामिल थी। लिखा है कि पटने के केन्द्र के पास धन की कमी न थी । सैकड़ों चैतनिक और अवैतनिक प्रचारक चारों श्रोर श्रा में क्रान्ति का प्रचार करते हुए फिरते थे । वहाँ के नेताओं का दिल्ली, लखनऊ और कानपुर के नेताओं के साथ गुप्त पत्र व्यवहार जारी था। अंगरेजों को जब पटने वालों के गुप्त इरादों का सुराग मिला तो कुछ सिख सेना पटने की रक्षा के लिए भेजी गई। लिखा है कि नगर के लोगों ने इन सिख सिपाहियों से घृणा प्रकट करने के लिए उनके साए तक से बचना शुरू किया। जिला तिरहुत के एक पुलिस के जमाट्रार बारिसली को

  • क्रान्ति के सन्देह पर गिरसार कर फाँसी दे दी गई। बारिसअली

के पत्रों में एक पत्र गया के नेता आलीकम के नाम का पकड़ा गया। कम्पनी को फौज का एक दस्ता अलीकरीम को गिरफ्लार फरने के लिए भेजा गया। श्रतीकरोम श्रपने हाथी पर बैठ कर देहात चला गया। कम्पनी की फौज ने उसका पीछा किया है किन्तु