पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५३६

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अवध और बिहार

अवध और विहार १८१ पराजय बूढ़ा कुंवरसिंह बारह सौ सैनिकों और अपने महल की लियाँ "को साथ लेकर जगदीशपुर से निकल गया। उसने अब किसी दूसरे स्थान पर जाकर अनज़ों के साथ अपना यत भाज़ माने का निश्चय किया। यह वह समय था जब कि कुछ गोरो औौर कुछ गोरखा सेना आजमगढ़ के की ओर से अवध में प्रवेश कर मिलमैन की रही थी1 १८ मार्च सन् १८५८ को आस पास के अन्य क्रान्तिकारियों को अपने साथ लेकर कुबसई ने आजमगढ़ से २५सील दूर अतरौलिया नामक स्थान पर डेरा जमाया। जिस समय अंगरेज़ुर्गों को यह समाचार मिला, तुरन्त मिलमन के अधीन कुछ पैदल, कुछ संवार और दो तोपें २२ मार्च सन् १८५८ को कुंवरसिंह के मुक़ाबले के लिए पहुँची । उसी दिन अतरौलिया के मैदान में दोनों ओर की सेनाओं का आमना सामना हुआ। थोड़ी ही देर बाद कुंवरसिंह अपनी सेना सहित ज़ोरों के साथ पीछे को हटने लगा 1 अंगरेज़ी सेना समझ गई कि कुंबरमिंद हार कर मैदान से भाग गया । विजय के रूप में मिलमैन ने अपनी सेना को एक नाम के बगीचे में ठहर कर भोजन करने ' की श्राशा दी। किन्तु कुंवरसिंह उस जहुल की एक एक चप्पा ' भूमि से परिचित था। इस बुढ़ापे में भी बह श्रत्यम्त फुरतीला था । ठीक उस समय, जब कि मिलमैन की सेना भोजन कर रही थी, कुंवरसिंह प्रचानक उस पर श्रा द्टा । थोड़ी देर के संग्राम के बाद मैदान पूरी तरद कुंवरसिंह के हाथ रहा। मिलमैन के अनेक कं