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भारत में अंगरेज़ी राज

१८६ भारत में अंगरेज़ी राज से घायल से चल कर एक निग्रत स्थान पर मिलने की ग्राझा दी। डगलस के लिए इन पृथक पृथक दलों का पीछा कर सकना असम्भव हो गया । कुंवर सिंह को सारी टुकड़ियाँ ग्रागे चल कर मिल गई और गंझा की ओर बढ़ चलीं । गझा के निकट पहुंच कर कुंवरसिंह ने यह अफवाह उड़ा दी कि मेरी सेना बलिया के निकट हाथियों पर कुंवरसिंह गोली गझा को पार करेगी । अंगरेज़ी लेना उसी स्थान पर जाकर कुंवरसिंह को रोकने के लिए डट गई। किन्तु कुंवरसिंह उस स्थान से सात मील नीचे शिवपुर घाट से रात्रि के समय किश्तियों में गद्दा को पार कर रहा था। अंगरेज़ी सेना को जब इस चाल का पता लगा, बह शिवपुर पहुँची। कुंवरसिंह की समस्त सेना गंगा पार कर चुकी थी। केवल एक अन्तिम किश्ती रह गई थी । कुंवरसिंह इसी किश्ती में था। ठीक जिस समय कुंवरसिंह की किश्ती बीच धार में थी अंगरेज़ी सेना के किसी सिपाही की गोली कुंवरसिंह की दाहिनी कलाई में आकर लगी । ८१ वर्ष के बूढ़े कुबेरसिंह ने यह देख कर कि दाहिना हाथ निकम्मा हो गया और समस्त शरीर में विप फैल जाने का डर हैबाएँ हाथ से तलवार खींच कर अपने घायल दाहिने । हाथ को स्वयं एक बार में कुहनी पर से काट कर गड़ा में फेंक दिया। घाव पर कपड़ा लपेट कर कुंवर सिंह ने गद्दार को पार किया । अंगरेज़ी सेना गझा के उस पार उसका पीछा न कर सको।