पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५५२

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अवध और बिहार

अवध और बिहार १५४५ आदमदशाह को उस गाँव से निकल कर भाग जाना पड़ा औौर बारी का मान अंगरा के हाथ रहा । कम्पनी को सेना के अनेक दल इस समय प्रबंध और रुहेलखण्ड के क्रान्तिकारियों को उत्तर की ओर खदेड़ते हुए चले जा रहे थे। १५ अप्रैल को बापोल ने लखनऊ से ५० मील दूर रुइया के क़िले पर हमला किया। रुइया के ताल्लुकार जनरल को होप नरपतसिंह के पास केवल २५० साधारण सिपाही थे। बालपोल के साथ कई हज़ार सेना और तोप थीं। सामने की ओर से वाहपोत के डेढ़ सौ श्रादमियों ने किले पर चढ़ाई की किले की दीवारों से गोलियों की बौछार शुरू हुई । ६ अंगरेज़ बहीं पर मर गए, शेप को पोछे हट जाना पड़ा । बालपोल ने अपनी तोपों सहित जिले के दूसरी ओर से गोलबारी शुरू की। वालपोल के गोले जिले के ऊपर से पार कर दूसरी ओर की अंगरेज़ी सेना पर जाकर गिरने लगे । बालपल की ' घबराहट को देख कर जनरल होप आगे बढ़ा । होप मारा गया। समस्त अंगरेज़ी सेना को ज़िरहत के साथ हार फर किले से पीछे हट जाना पड़ा । जनरत । होष अंगरेजों के मुख्यतम और अनुभयो सेनापतियों में से था । उसकी मृत्यु से भारत औौर इनलिस्तान के अंगरेजों को बहुत बड़ा शोक हुआ। इस विजय के बाद भी मरपतिसिंह ने जब देख लिया कि मैं विशाल अंगरेज़ी सेना के मुकाबले इस छोटे से किले में देर तक म ठहर , तो अपने मुट्ठी भर श्रादमियों हित बह किले से बाहर निकल गया। क