पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५५४

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अवध और बिहार

अवध औौर बिहार १७७७ कर लिग्रा में कैम्पबेल ने फिर शाहजहांपुर पर हमला किया। इस बार “तीन दिन तक शाहजहाँपुर में संग्राम होता रहा। एक बार मालूम होता था कि मौलवी अहमदाह का प्रय शाहजहांपुर से बच फर निफरत सकना सम्भव है । तुरन्त चारों ओर से क्रान्तिकारी नेता सर्वप्रिय मौलवी ग्रहदशाह की सहायता के लिए पहुँच गए । बेगम हज़रतमहलशाहज़ादा फीरोज़शाह, नाना सांदव इत्यादि सब अपनी सेनाएँ लेकर १५ मई को शाहजहाँपुर पहुँचे। मौलवी अहमदशाह फिर इन सब की सहायता से शाइजहाँपुर से निकल पाया । इसके बाद रुहेलखण्ड से घूम कर अहमदशाह ने फिर अवध के अन्दर प्रवेश किया। मौलवी अहमदशाह किसी तरह अंगरेजों के काबू में नम श्राता था । इस बार प्रबंध में प्रवेश करते ही उसने मौलवी अहमदशाह अंगरेज़ों से लड़ने के लिए फिर अपना बल बढ़ाने का प्रयत्न किया। मार्ग में पबनम नाम की छोटी सी हिन्दू रियासत थी। मौलवी अहमदशाहू ने वेगम हज़रतमहल की मोहर लगा एक परवान पचम के राजा के पास सहायता के लिए भेजा। राजा जगन्नाथसिंह ने तुरन्त मौलवी अहमदशाद को अपने यहाँ बुलवाया । अहमदशाह अपने हाथी पर बैठ कर पबग ( पहुँचा। रक्षा जगन्नाथसिंह और उसके भाई से अहमदशाह की बातचीत हुई बातचोत हो ही रही थी कि जगन्नाथसिंह के भाई ने धोखे से लयो अहमदशाह पर गोली चला दी । आइमदशाह इस विश्वासघातक के बार से न बच सका । राजा जगन्नाथसिंटू ने के साथ दती