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१६०६
भारत में अंगरेज़ी राज

१६०६ भारत में अंगरेजी राज कम्पनो की सेना को कुछ दूर तक फिर पीछे हटना पड़ा । इतने में , किसी ने नाकर रानो को सूचना दी कि सदर बाबू का रक्षक सरदार बुद्राबख़्श और तोपख़ाने का असर सरदार गुलाम गौस खाँ, दोनों मारे गए, जिसका अर्थ यह था कि उत्तर की ओर का दरयाज़ा भी अब शत्रु के लिए खुल गया । रानी का दिल टूट गया । एक बार उसने किले के मैगज़ीन में अपने हाथ से झाग लगा कर उसके साथ अपने प्राण दे देने का इरादा किया । किन्तु फिर अधिक सोच समझ कर उसने झाँसी से बाहर कहीं और पहुँच कर स्वाधीनता संग्राम में सहायता देने का निश्चय किया । झाँसी पर कम्पनी का क़ब्ज़ा हो गया । रानी लक्ष्मीबाई ने उसी दिन रात को सदा के लिए झाँसी छोड़ दी। हथियार बाँधे हुएमरदाना घेप में रानी लघमीबाई से और अपने दत्तक पुत्र दामोदर को कमर कालपी की ओोर कसे हुए यह किले की दीवार पर से एक हाथी की पीठ पर कूद पड़ी । वह अपने प्यारे सफेद घोड़े पर सवार हुई १० या १५ सवार उसने अपने साथ लिए और कालपी की और रवाना हुई । लेफ्टिनेट बोकर ने कुछ चुने हुए सवार लेकर रानी का पीछा किया है रानी और उसके साथियों ने अपने घोड़ों सौ मील का को सरपट छोड़ दिया। वोकर और उसके आश्वारोहण सवार बराबर पीछा करते रहे । सुबह होते होते रानी एक क्षण भर के लिए भाण्डेर नामक ग्राम के पास ठहरी।