पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५६६

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१६०७
लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

१६०७ लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे गाँव से दूध लेकर उसने दामोदर को पिलाया । किन्तु ग्रंगरेजी सैन्यदल बराबर पीछा कर रहा था । रानी तुरन्त अपने साथियों सहित फिर घोड़ों पर चढ़ कर कालपी की ग्रोर बढ़ी । लेफ्टिनेएट वोकर का घोड़ा रानी के घोड़े के पास जा पहुँचा । रानी ने तुरन्त अपनी तलवार खींच ली । रानी लक्ष्मीबाई की तलवार के एक वार में घायल होकर वोकर अपने घोड़े से गिर पड़ा। रानी के साथ के सचाऐं और वोकर के साथ के सबारों में तलवार के हाथ होने लगे। अन्त में घायल बोकर और उसके साथी हार कर पीछे रह गये । रानी और उसके साथियों ने फिर अपने घोड़ों को सरपट छोड़ दिया। सुबह से दोपहर हो गया और दोपहर से तीसरा पह, किन्तु रानी को ठहरने का अवकाश न मिल सका । चलते चलते शाम हो गई, तारे निकल चाप, किन्तु फिर भी रानी न सकी। अन्त में आधी रात के करीब अपने बच्चे दामोदर को कमर से बाँधे हुए, झाँसी से कालपी तक १०२ मील से ऊपर फ़ासला तय करके रानी लक्ष्मीबाई ने कालपी में प्रवेश किया। रानी का प्यारा घोड़ा कालपी पहुँचते ही गिर कर मर गया। रानी ने शेप रात कालपी में विश्राम लिया । यह को रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब के भतीजे रावसाहब और सेनापति तात्या टोपे में परस्पर बातचीत हुई। जिस प्रकार सरप्ट रोज़ मऊ से झाँसी की ओर रवाना हुआ। था उसी प्रकारजनरल हिटलॉक १७ फ़रबरी यटा का नयाय सन् १८५८ को जबलपुर से सागरइत्यादि फिर