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भारत में अंगरेज़ी राज

१६१२ भारत में अंगरेजी राज । चह फिर पीछे मुड़ा। गोपालपुर में तात्या, लक्ष्मीबाई, चाँदा के , नवाब औौर रावसाहब की फिर भैठ हुई। लक्ष्मीबाई ने अब रावसाहब को सबसे पहले ग्वालियर विजय करने की सलाह दी, ताकि क्रान्तिकारियों का फिर से एक नया केन्द्र बन सके । २८ मई सन् १८५८ को गठब क्रान्तिकारी नेता स्वालियर के सामने पहुँच गए । महाराजा सधिया के पास नीचे लिखा पत्र भेजा गया- “इम लोग प्रापके पास मित्र भाव से आ रहे हैं। श्राप हमारे ( पेशघा के ) और अपने पूर्व सग्यन्ध को स्मरण कीजिए। हमें वापस सहायता की आाशा है, ताकि हम दक्खिन की ओर बढ़ सकें, इत्यादि ।” जयजीराब सींधिया इन लोगों की और मित्रता दर्शाने के स्थान पर १ जून सन् १५८ को अपनी सेना यर पर ग्वालियर गौर तोपों सहित उनके मुकाबले के लिए क्रान्त्किारियों का रिमा का निकला 1 सींधिया के इरादे को देख कर रानी लक्ष्मीबाई तीन सौ खबार्गों सहित सींधिया की तोपों पर टूट पड़ो। किन्तु सधिया की अधिकांश सेना पहले ही ने तात्या को वचन दे चुकी थी । ये लोग तुरन्त अपने अफसरों सहित क्रान्तिकारियों को योर आ मिले । ग्वालियर की तोप ठण्डी हो गई। जयाजीराब और उसके मन्त्री दिनकरराव को मैदान छोड़ कर आगरे की लोर भाग जाना पड़ा । ग्वालियर की प्रजा ने हर्ष और उल्लास के साथ विजयी क्रान्तिकारियों का स्वागत किया । ग्वालियर की सेना ने पेशवा नाना साहब के प्रतिनिधि राव सद्घ को पेशवा मान कर तोपों की सलामी दी। सधिया के