पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५७२

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लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे १६१३ अर्थसचिव अमरचन्द भाटिया ने सधिया का सारा प्रज्ञाना क्रान्तिकारी नेताओं के हवाले कर दिया। ३ जून सन् १८५८ को फूलबाग में एक बहुत बड़ा दरबार हुआ। तमाम सामन्टू, सरदारों और अमीरों ने अपना अपना स्थान ग्रहण किया । अरब, रुहेला, राजपूत और मराठा पलटन अपनी बर्दियाँ पहरे दरबार में जमा होगई । पेशवा का शिरपना औौर करली तुर्की रावसाहब के सिर पर रक्ना गया। समस्त ख़बार में रावलाइव को पेंशवा स्वीकार किया । पेशवा के मन्त्री नियुक्त कर दिये गए। तात्या टोपे प्रधान सेनापति नियुक्त हुआ 1 बीस लाख रुपये सेना में तकसीम कर दिए गए और अन्त में तोपों की सलामी हुई। इस प्रकार ताग्रह और लक्ष्मीबाई ने दिल्लीकानपुर नौर तन के स्थान पर सम् ५७५८ के अन्ति तारया पर लक्ष्मी कारिकर्षों को एक नया और रक्त केन्द्र बाई की योग्यता प्रदान कर दिया 1 तात्या और लक्ष्मीबाई की इस फारबाई को बयान करते हुए इतिहास लेखक सॉलेसम लिखता है “इस फार जो बात असम्भव मालूम होती थी यह होगई ।x हैं । सर ए न समझ गया कि-य देर करने से कितनी ज़रदस्त नि प्रसिद्ध है। यदि ग्वालियर तुरन्त विप्लफारियों के हाथों में ग खीम लिया गया तो कोई य६ पहले से नहीं कट सकता कि नतीजा कितना अधिक पुरा ो सकता है। यदि विद्रोहियों को प्रकाश मिल गया सी ताया है, जिसका राजनैतिक शूर सैनिक यभन्न धकि यर पर खाता दी जाने के कारण यहद यद गया है पर जिसके पास इस समय भालियर के समत , यहों का धन