पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१६१७
लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

लोवाइ और तात्या टोपे १६१७। - २० सवार बाकी रह गए 1 रानी ने अपने घोड़े को सरपट छोड़ा और शत्रु को चीरते हुए दूसरी औोर की क्रान्तिकारी सेना से जाकर मिलना चाहा। अंगरेज़ सवारों ने उसका पीछा किया । रानी अपनी तलवार मार्ग काटती हुई ग्रागे बढ़ी । श्रचानक पक से गोली उसकी सहेली मन्द्र के प्राकर लगी। मन्दा घोड़े .से गिर कर समाप्त हो गई । रानी ने तुरन्त मुड़ कर अपनी तलवार से उस गोरे सवार पर वार कियाजिसकी गोली ने सम्र को समाप्त किया था 1 सवार कष्ट कर गिर पड़ा, रानी फिर भागे बढ़ी। सामने एक छोटा सा नाला था। एक लाँग के बाद ग्रंगरे सयारों का रानी लक्ष्मोवाई को छू सकना असम्भव हो जाता, किन्तु दुर्भाग्यवश्रा रानी का घोड़ा नया था । पिछले संग्रामों के ग्रान्दर उसके कई प्यारे घोड़े उसके नीचे समाप्त हो चुके थे । घोड़ा बजाय छलाँग मारने के नाले के इस पार ' चकर थाने लगा । अंगरे । खबार प्रध और अधिक निकट ग्रा पहुंचे। रानी चारों ओोर से घिर गई । है । रानी उस समय बिलकुल अकेली रह गई । उसने अकेले ही उन सब का अपनी तलवार से मुक़ाबला किया । १- पमोयाई का एक सवार ने पीछे से आकर रानी के सिर पर ल ' यलिदान यार किया । सिर का हिम भाग अलग हो गया दाहिनी आंख भी निकल कर बाहर नागई, फिर भी लक्ष्मीबाई घोड़े पर डटी हुई अपनी तलहर चलाती रही । इतने में एक यार रा।मी की छाती पर दृश्रा 1 सर और छाती दोनों से खून का फव्वारा