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भारत में अंगरेज़ी राज

१६२२ भारत में अंगरेज़ी राज । । महीने तक हिन्दोस्तान की किस्मत निज़ाम अफ़ज़लुद्दौला और उसके वजीर पर सालारजन के हाथों में थी ।” निस्सन्देह यदि हैदराबाद का निजाम क्रान्तिकारियों का साथ दे जाता तो समस्त दृदक्खिनी भारत में भयंकर आग लग जाती। जून और जुलाई सन् ५७ में हैदराबाद के नगर निवासियों के अन्दर क्रान्ति की और बेहद जोश दिखाई दिया। बड़े बड़े मौलवियों ने अंगरेजों के विरुद्ध फतवे निकालेक्रान्ति के पक्ष में हजारों पत्रिकाएँ बाँटी गई, मसजि में बड़ी बड़ी सभायें हुईं, कुछ मुसलमान सिपाही भी बिगड़े, किन्तु नेजाम और उसके वीर में अंगरेज़ों का साथ दियाक्रान्तिकारी नेताओं को पकड़ कर उनके सच्चा , हवाले कर दिया, स्वयं कम्पनी की सेना की मदद से विद्रोही सिपाहियों को कटवा डाला और हैदराबाद को बचाए रखा । हैदराबाद ही के निकट एक छोटी सी रियासत ज़ोरापुर की थी। ज़ोरापुर का राजा छोटी उम्र का और ज्ञोरापुर का बीर क्रान्ति के पक्ष में था । अंगरेजों से लड़ने के लिए थ* आन" उसने शव और रुहेले पठानों की एक सेना जमा कर ली । फ़रवरी सन् ५८ में बह हैदराबाद भाया 1 पर सालारजन ने उसे गिरफ्तार करा कर अंगरेजों के हवाले कर । दिया । गिरफ्तारी के बाद इस बालक राजा का व्यवहार अत्यन्त है. प्रशंसनीय औौर बीरोचित था । एक अंगरेज़ अफ़सर मीडोज़ टेलर के साथ बह बड़ा मेल जोल रखता था , और उसे "पा" कहा करता था । जेलखाने में मीडोज़ टेलर उससे मिलने गया । राजा बाक रा