पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५८६

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लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

लक्ष्मीबाई औौर तात्या टोपे १६२३ । पूर्ववत् बड़े श्रद्र से मिला । मीडोज़ टेलर ने उससे अन्य क्रान्ति ‘‘कारी नेताओं के नाम पूछे । इस पर टेलर लिखता है, –“राजा ने बड़े गर्व के साथ पकड़ कर उत्तर दिया ‘नहीं प्रत्पा, मैं यह कमी नहीं बताऊंगा ! आप मुझे सलाह देते हैं। कि मैं रेजिडेण्ट से जाकर मिलू, किन्तु मैं यह नहीं कहूंगा । शायद उसे यह याशा होगी कि मैं अपने प्राणों की शिक्षा म]ा, किन्तु थप्पा ! मैं दूसरे को भिक्षा पर फायर की तरह जीना नहीं चाहता गौर न में कभी प्रपने देशवासियों के नाम प्रकट कगा !" मीडोज टेलर एक दिन फिर राजा के पास गया। उसने बालक राजा से कहा कि यदि तुम दूसरों के नाम बता दोगे तो तुम्हें क्षमा कर दिया जायगा । राजा ने उत्तर दिया “हैं ” मैं क्या ? जय कि मैं मौत के मुँह में जाने को तैयार हैं, पया मैं विश्वासघात करके अपने देशवासियों के नाम प्रगट करेगा १ नहीं, नहीं ! तोप, फोंसी, कालापानी -इनमें से कोई भी इतना भयार नहीं है जितना विश्वासघात !” टेलर ने राजा को सूचना दी कि तुम्हें प्रापदण्ड दिया जायगा। रज्ञा ने उत्तर दिया- "किन्तु थप्पा, मुके एक प्रार्थना करनी है, मुझे फोंसी न देना, मैं घर नहीं हैं। मुझे तोप के मुँह से उड़ाना । फिर देखना कि मैं कितनी शान्ति के साथ सोप के मुंद पर स्ट्रा रह सकता हूं !" टेलर के कहने सुनने से राजा को प्रापदण्ड के स्थान पर काfपानी की सजा दी गई । अब उसे कालेपानी ले जा रहे थे,