पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५९०

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लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे १६२७ देखे हैं और बहुत से थहारों को इस इद्रता के साथ लड़ते देखा है । कि या सो विजय प्राप्त करेंगे और या मर मिटेंगे; किन्तु मैंने इन ज़मींदा रीि क के संयवहार से बढ़ कर शानदार कभी कोई दृश्य नहीं देखा ! पहले उन्होंने हमारी एक सबार पलटन पर हमला किया, इमारे सवार उनके मुकाबले पर न ठहर सके और इसने विचलित हो गए कि हमारी दो तोपें, जो उस पलटन के साथ थीं, बड़े व्रतरे में पैढ़ गई। मैंने एक दूसरी सात नयर पलटन को आगे बढ़ने का हुकुम दिया । उनके साथ चार और तोपें थीं । ये तोपें शत्रु से पच सौ राज़ के फ़ासले पर लगा दी गई । उन पर गोले बरसाने शुरू किए गए । वे इस शुरी तरह कट कट कर गिरने लगे जिस प्रकार हसिये से घास में उनका नेता एक लम्या चोढ़ा आदमी था । उसके गले में एक बैगा था । वह ज़रा नहीं घबराया । उसने अपनी तोरों के १rस दो हरे औरखे गढ़ा कर उनके नीचे अपने भादमियों को जमा किया । किन्तु हमारे गोले इस बुरी तरह चरस रहे। थे कि जो लोग तोर्षों के पास तक पहुँचते थे, वहीं सर कर गिर पड़ते थे । इसके बाद दो और नई पलटनें हमारी सहायता के लिए पहुँच गई । तय हम याक़ी बचे शत्रुओं को पीछे हटा सके । इस पर भी वे अपनी तलवारें और भाले हमारी श्लोर घुमाते जाते थे, औौर निर्भीकता के साथ हमें लड़ने के लिए नान करते जाते थे । केवल उन दो तोपों के पास पास हमें १२५ तारों मिली । तीन घण्टे के घमासान संग्राम के बाद विजय हमारी चोर रही ।' इस प्रकार के भयदुर संग्राम इस समय प्रबंध में चारों ओोर जारी थे 1 श्रतूबर सन् १८५ = में कमाण्डरइनचीफ़ सर काँतिम फैम्प • Hone Grants littats f 14 sy IVer, p, 292.