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भारत में अंगरेज़ी राज

१६२ भारत में अंगरेजी राज बेल ने नए सिरे से अनेक गोरी और काली पलटनों को जमा करके चारों ओर से आयध के क्रान्तिकारियों को उत्तर की ओर खदेड़ना शुरू किया। नए सिरे से श्रवधनिवासियों ने अपनी एक एक चटपा भूमि के लिए विक्ट संग्राम किया । बेनीमाधव राजा बेनीमाधव के स्थान शाहरपुर पर तीन सेनाओं ने तीन राजा नीमा पर से चढ़ाई की । अंगरेज़े का बल उस समय बेहद वढ़ा हुया था और वेनीमाधव के पास सेना और सामान दोनों की कमी थी। फिर भी बेनीमाधव ने विदेशियों की अधीनता स्वीकार न की । कमाण्डरइन चीफ़ सर कॉलिन कैम्पबेल ने बेनीमाधव के पास सन्देशा भेजा कि अब ग्राषका विजय की आशा करना व्यर्थ है, यदि श्राप था रक्तपात नहीं चाहते तो अंगरेज़ सरकार की अधीनता स्वीकार कीजियेश्रापको क्षमा कर दिया जायगा और आपकी समस्त ज़मींदारी प्रापको वापस कर ी जायगी। बेनीमाधव ने उत्तर दिया- “इसके याद जिले की रक्षा कर सकना मेरे लिए असम्भव है, इसलिए मैं जिले को छोड़ रहा हैं। किन्तु में अपना शरीर थापके कदापि सुपुर्द न करें । क्योंकि मेरा शरीर मेरा अपना नहीं, यदि मेरे बादशाह का है ।” निस्सन्देह 'बादशाह' शब्दु से बूढ़े बेनीमाधव का तात्पर्य अवधनरेश नवाव विरजीस क़द्र और दिल्ली सम्राट बहादुरशाह सं था। क्रान्ति को प्रारम्भ हुए पूरा डेढ़ वर्ष बीत चुका था । इस