पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५९८

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लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

लक्ष्मीबाई और तांत्या टोपे १६३५ , भी नवध का प्रान्त श्रंगरेजों के काबू में न श्रा सका । समय समय पर शद्रपुरदुढियाबेड़ा, रायबरेली, सीतापुर अवनिासियों इस्यादि स्थानों पर बराबर संग्राम होते रहे । के अन्तिम नन्त में अप्रैल सन् १८५४ तक श्रवध के समस्त प्रय न क्रान्तिकारी नैपाल की सरहद के उस पार निकाल दिए गए। कहा जाता है कि करीब साठ हज़ार , स्त्री और बच्चों ने नाना साहूबालासाहव, बेगम इज़रतमहल और निर्वासित नबाव बिरजील क़दर के साथ नेपाल में प्रवेश क्रान्तिकारी किया । नाना साहब औौर महाराजा जनबहादुर में कुछ दिनों तक पत्र व्यवहार होता रहा । नाना साहब ने पहले नेपाल दश्वार से गंगरेज के विरुद्ध सहायता की प्रार्थना की, उसके बाद केवल भारतीय निर्वासितों के लिए नेपाल में रहने की इज़ाजत चाही। महाराजा जहूबहादुर ने इनमें से कोई बात स्वीकार म की, बल्कि अंगरेजी सेना को नेपाल में प्रवेश करने और इन भारतीय निर्वासितों का संहार करने की इजाज़त दे दी। इन में से अनेक हथियार फेंक कर भारत वापिस आ गएघने जंगलों और पहाड़ों में खप गए। नाना साहब का जनरल होप ग्रण्ट के साथ कुछ पत्र व्यवहार हुआ, जिनमें से अन्तिम पत्र मेंअंगरेजों के प्रन्यायों को दर्शाते हुए नाना साहब ने लिखा :-- आपको हिन्दोस्तान पर क्रय करने का और मुझे दण्डनीय करार देने का पया अधिकार है : हिन्दोस्तान पर रक्षा करने का टापको किसने अधिकार