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लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे १६४३ 8 हमारा अयम्स अद्भुत मित्र तात्या टोपे इतना कष्ट देने वाला और जाका शान है कि उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती । पिछले जून के महीने से उसने मध्य भारत में तहलका मचा रघखा है, उसने हमारे स्थानों को गेंद डाता है, व्ाों को लूट लिया है और हमारे मैगज़ीनों पो ड्राती कर दिया है। उसने सेनाएँ जमा कर ली हैं और खो दी हैं, लड़ाइयों सक्षी हैं और क्षार खाई है, देशी नरेशों से तोप चीन की हैं, उन तारों को ग्लो दिया हैफिर और तोपें प्राप्त की हैं, उन्हें भी खो दिया है । इसके बाद उसकी यात्राएँ बिजली की तरह प्रतीत होती हैं । पटवा यह तीस तीस और चालीस चालीस मील रोज़ाना चलता है । कभी नर्मदा के इस पार और कभी उस पर हमारे सैन्यलों के बहू की बीच से निकल गया है, कभी पीछे से और कभी सामने से।” · कभी पहाड़ों पर से, कभी नदियों पर से, कभी वादियों में से और कभी घाटियों में सेकभी दलों में से, कभी ग्रागे से गौर कभी पीछे से, कभी एक शोर से और कभी घूम कर

  • : ४ फिर भी वह हाथ न चाया ’’

अन्त में अक्तूबर सन् १८५८ में तात्या अपनी सेना सहित रायसाहब गौर बाँदा के नवाब को साथ लिए हुए नागपुर के निकट पहुंच गया । लॉर्ड नि और उसके साथी काफ़ी घबरा गए । मॉनसन लिखता है लॉई केनिन की जिस मनुष्य को महाराष्ट्र अन्तिम ऐशया का परेशानी म्यार उत्तराधिकारी स्वीकार करता था उसका भतीजा

  • 74 7inc, 17th January, 1859.