पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६१०

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लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे १६४७ दक्खिनपूरव , मिचेल और वैनसन दक्खिन , और वॉनर क्लिन-पब्लिम और पझिम में । ये सब तात्या को घेर लेने के लिए बढ़े चले आ रहे थे । तात्या बढ़ते बढ़ते देवास पहुँचा। १६ जनवरी को सवेरे देवास में तात्या,रावसादव और फीरोज़ शाह तीनों खेमे में बैठे बातचीत कर रहे थे। अचानक किसी अंगरेज अफसर का हाथ तात्या की कमर पर पड़ा 1 अंगरेज़ सिपाही खेमे में श्रा टूटे । मालूम हुआ तात्या पकड़ किन्तु अचानक फिर ये तीनों नेता अंगरेज़ सिपाहियों के चंगुल से निकल गए । चारों ओोर खो , किन्तु उनका पता न चल २१ जनवरी को ये तीनों अलवर के निकट शिखरजी में दिखाई दिए । अंगरेजी सेना बराबर उन्हें घेरने का मानसिंह का प्रयल । करती रही। तत्या की सारी आशाएँ विश्वासघात अब टुकड़े टुकड़े हो चुकी थीं। यह थका हुआ था। मानसिंह पास के जंगल में छिपा था । तात्या ने फीरोज़शाह और रावसाहब को सेना के साथ छोड़ा और स्वयं तीन आदमियों सहित मानसिंह से मिलने गया । मानसिंह इस समय तक अंगरेज़ से मिल चुका था। उससे जागीर का वादा कर लिया गया था । फीरोज़शाह ने तात्या को वापस अपने पास बुलाना चाहा। मानसिंह ने उसे रोक लिया औौर ७ अप्रैल सन् १८8 को ठीक आधी रात के समय सोते हुए तात्या को शत्रु के हवाले कर दिया। १८ अप्रैल सन् १८५६ तात्या टोपे के लिए फ़ाँसी का दिन १०४ .