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१६४८
भारत में अंगरेज़ी राज

१६४८ भारत में अंगरेजी राज् नियत हुआ । चारों तरफ़ फ़ौज़ का पहरा था। लिखा है फ़ौज़ के चारों ओोर टीलों पर खड़े हज़ारों ग्रामनिवासी ताया का बलिदान तात्या को दूर से श्रद्धा के साथ नमस्कार कर रहे थे। तात्या टैर्य और साइल के साथ फाँसी के तते पर चढ़ा, उसकी बेड़ियां काटी गई। तात्या ने हंसते हुए अपने हाथ से फाँसी का फन्दा गले में डाल लिया । तgता लिंचगया, शाम तक तात्या का शव फाँसी पर लटकता रहा। शाम को अनेक यूरोपियन दर्शकों ने दौड़ कर तांत्या के सिर के दो दो, चार चार बाल तोड़ लिए और बोर तात्या की स्मृति स्वरूप उन्हें अपने पास रखा । राबसाहब और शहज़ा फ़ोरोज़शाह एक महीने बाद तक जी तोड़ सड़े। इसके बाद वेष बदल कर ड्रोनों जहृत्ल रावसाय रजरप्रसार में निकल गए। फीरोजशाह सन् १८६४ तक का प्रम्स भारत के जहूलों में घूमता रहा 1 उसके बाद अरब चला गया, जहाँ सन् १८६६ में वह अन्य अनेक निर्वासित भारतीय क्रान्तिकारियों के साथ फ़क़ीर के वेष में देखा गया1 रायसाहब तीन साल बाद पकड़ा गया और २० अगस्त सन् १८६२ को कानपुर में फाँसी पर लटका दिया गया । इस तरह हिन्दोस्तान को विदेशी शासन से स्वाधीन करने का सव से महान और व्यापक प्रयत निष्फरत गया और अंगरेज़ी '? राज की जड़ पक काल के लिए और अधिक मजबूती के साथ इस देश में जम गई।