पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६१८

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सन् ५७ के स्वाधीनता संग्राम पर एक दृष्टि

सन १७ के स्वाधीनता संग्राम पर एक दृष्टि १ संधिया श्र कमेथता क्रान्तिकारियां में व्यवस्था और छापालन की कमी दिखाई देती थी। दूसरा कारण था , होलकर और राजपूताने के मरेशों का केबल सोच और विश्वास के कारण उस देशी नरेशों की राष्ट्रीय बिप्लब में भाग न ले सकन । यदि महाराजा जयाजीराब सधिया या कोई प्रमुख राजपूत नरेश समय पर अपनी सेना सहित दिल्ली पहुँच जाता तो कम्पनी की सेना के लिए ठहर सकना सर्वथा असम्भव होता और राजधानी के अन्दर प्रभावशाली नेता की कमी भी पूरी हो जाती। सम्राट बहादुरशाह ने इन लोगों को क्रान्ति की औोर करने का प्रयत भी किया, किन्तु उसे सफलता न मिल सकी । तीसरा कारण यह था कि विन्ध्याचल से नीचे के भाग ने उससे शतश उत्साह के साथ भी क्रान्ति का दयियन में साथ नहीं दिया, जिस उत्साह के साथ कि उदासीनता विन्ध्याचल से उत्तर के । यदि भाग ने दिया मद्रासबम्बई और महाराष्ट्र में उत्तर भारत के साथ साथ उसी तरह शुद्ध शुरू हो गया होता तो उन प्रान्तों से उत्तर की और सेना

से सकना अंगरेजों फ के लिए असम्भव होता, जनरल नीलजनरल

हैवलॉक इत्यादि फलकत्ले तक भी न पहुंच पातेऔर बनारस, इलाहाबाद, कानपुर और अन्त में लखनऊ विजय कर सकता ३ अंगरेज के लिए नामुमकिन होता। युद्ध की असफलता के ये पाँचॉ कारण इस प्रकार के हैं कि