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भारत में अंगरेज़ी राज

१६४ भारत में अंगरेज़ी राज यदि इनमें कोई पक भी अनुपस्थित होता तो शेष चारों के होते हुए भी शायद युद्ध असफल न हो पाता। अब प्रश्न यह हो सकता है कि यदि सन् ५७ का गृह सफल हो गया होता तो भारत या संसार के लिए नतीजा क्या होता ? किसी भी निष्पक्ष इतिहास लेख को इससे इनकार नहीं हो सकता कि अधिकांश क्रान्तिकारी अपने देश की चोर दोनों के स्वाधीनता और अपने धर्म की रक्षा के लिए आस्याचारों को की मैदान में उतरे थे । दूसरी ओर जिन अंगरेजों तुलना "" ने उनका विरोध किया उनका मुख्य उद्देश्श इस देश के अपर अंगरेज़ी फ़ौम के स्वेच्छाशासन को कायम रखना था। निस्सन्देह पहला आदर्श दूसरे आदर्श की अपेक्षा उच्चतर है । दोनों ओर से समय समय पर प्रशंसनीय वीरता और साहस का परिचय दिया गया। यहाँ पर दोनों ओर के अत्याचारों पर एक निगाह डालना अनुचित न होगा । बहुत मुमकिन है दिल्ली, कानपुर, झाँसी इत्यादि में कुछ न कुछ अंगरेज लियाँ और बच्चों की हत्या हुई । किन्तु इस सम्बन्ध में हमें एक दो बातों को याद रखना होगा। पहली यह कि जितनी बातें क्रान्तिकारियों के अत्याचारों के विषय में अंगरेज इतिहास लेखकों की पुस्तकों क्रान्तिकारियों पर में पाई जाती हैं उनमें असत्य की मात्रा बहुत ठे इलाम काफ़ी है । इसके सुबूत में हम ऊपर भी कई निष्पक्ष अंगरेजों की सम्मतयाँ नकृद्धि कर चुके हैं। इन्फ्रेंलिस्तांत की पार्लिमेएट के मेम्बर मिस्टर लेयर्ड ने इस तरह की घटनाओं की