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भारत में अंगरेज़ी राज

१६५६ भारत में अंगरेजी रा । हैं और कहने वालों के अपने सम से गढ़े हुए हैं, जिसके लिए उन्हें लजा आनी चाहिए ।" प्रामाणिक अंगरेज़ लेखकों की सम्मतियाँ इस विषय की भी नक़ल की जा चुकी हैं कि कानपुर में अंगरेज़ क्रान्ति के नेताओं यदि स्त्रियों और बच्चों की हत्या हुई भी हो तो की उदारता वह नाना साहब की इजाज़त से नहीं की गई और न नाना साहब पर उसकी ज़िम्मेदारी लादना न्याय है। झाँसी में भी किसी निहत्थे अंगरेज की हत्या में रानी लक्ष्मीबाई का कोई हाथ न था 1 सम्राट बहादुरशाह और नाना लाहवबेगम हजरत महल और रानी लक्ष्मीबाई चारों ने समय समय पर अंगरेज स्त्रियों और बच्चों की रक्षा का पूरा प्रयत्न किया । फॉरेस्ट लिखता है कि अवध के नेतऑर्टी ने एक एलान द्वारा अपने अनुयाइयों को आशा दी किलियों या बच्चों की हत्या से अपने आन्दोलन को कललित न करना ।' अवध के अन्दर असंख्यु मिसालें ऐसी मिलती हैं जिनमें क्रान्तिकारी जमींदारों और जनता ने अंगरेज लियों और बच्चों यहाँ तक कि झाचित अंगरेज पुरुषों को अपने महलों और मकानों में आश्रय दिया। इसके विपरीत जनरल मील, कूपरहैवंतॉक, हडसन जैसे अनेकों ने स्थान स्थान पर जिस तरह के कृत्य किए हैं । उनके विषय में स्वयं गबरनर जनरल लॉर्ड केनिन ने, २४ दिसम्बर सन् १८५७ को, अपनी कौन्सिल के अन्दर कहा था ‘न केवल छोटे बड़े हर तरह के अपराधो ही, बल्कि वे लोग भी

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