पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६२२

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सन् ५७ के स्वाधीनता संग्राम पर एक दृष्टि

सन् ५७ के स्वाधीनता संग्राम पर एक दृष्टि १६५s झिमका अपराध कम से कम भ्रयन्त सम्दिध था, बिना किसी भेदभाव के ई - फाँसी पर लटका दिए गए 1 ग्रामों को आम तौर पर जला डाला गया और लूट लिया गया है इस तरह दोपी गौर निर्दे, पुरुप औौर स्वी, बच्चे और बूढ़े, सब को बिना भेदभाव दण्ड दिया गया हैं xt नीत, हडसन कैंसरों के के अन्य अत्याचारf को दोहराना मानव ट्ट को यातना पहुँचान है। । किन्तु साथ ही भारतीय क्रान्तिकारी अपनी 'स्वाधीनता और धर्म की रक्षा’ के नाम पर खड़े झुए थे । यूरोप स्वाधीनता संग्राम और भारत की सभ्यताओं और दोनों के नैतिक पर एक कलंक आद में बहुत बड़ा अन्तर है । अंगरेज़ जनल मील के आस्याचार कानपुर या किसी दूसरी जगह निहत्थे अंगरेज के ऊपर भारतीय क्रान्तिकारियों के अत्याचारों के लिए कोई बहाना । नहीं हो सकते। बहुत सम्भव है कि करीब दो सौ अंगरेज़ा लिया। औौर वालों की हत्या और जहाँ तक पता चल सकता है, सम् ५७ में समस्त भारत के अन्दर इससे अधिक अंगरेज़ स्त्रियों और बच्चों की हत्या नहीं की गई-स्वाधीनता के उस पवित्र नान्दोलन पर सदा के लिए एक कलंक रहेगी। ., किन्तु फिर यह प्रश्न उठता है कि यदि खन् ५७ की क्रान्ति सफल हो गई होती तो हालत क्या होती। संसार यदि क्रान्ति सफल की सभी कौमों और लिए स्वाधीनता देशों के हो गई होती हर हालत में श्रेयस्कर और पराधीनता संघ से

  • See page 1658 of his hook,