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भारत में अंगरेज़ी राज

१६५ भारत में अंगरेजी राज बड़ा शाप है। किसी भी क़ौम को अपनी उन्नति या अपने सावगिक विकास का पूरा अवसर केवल स्वाधीनता में ही मिल सकता है । भारत या कोई देश इस व्यापक नियम कंा अपवाद नहीं हो सकता । किन्तु साथ ही सन् ५७ के हालात को ध्यान से पढ़ने पर तीन बातें हमारी नजर में सबसे अधिक चमकती हैं। पहली बात यह है। इसमें सन्देह नहीं सम् ५७ का स्वाधीनता संग्राम इस देश में हिन्दू मुसलिम पेयय का एक धर्मऔर ‘दीन’ सुन्दर और ज्वलन्त उदाहरण था । उस संग्राम की आवाज़ के समस्त हिन्दू और मुसलमान नेता, और लाखों हिन्दू और मुसलमान जन सामान्य अपने अपने धार्मिक विश्वास पर कायम रहते हुए, भारत सम्राट के झंडे के नीचेकंधे से कंधा मिलाकरअपने प्यारे देश की आज़ादी के लिए युद्ध कर रह थे। आज़ादी की लगन ने उस समय भारत के हिन्दू और मुसलमानों को कितना बेचैन कर रखा था इसकी एक सुन्दर मिसाल यह है कि गाय और सुअर की चरवी के जो कारतूस युद्ध का एक खास सबब थे, एक बार शुरू हो जाने पर, युद्ध के अनेक मैदान , लाखों हिन्दू और मुसलमान सिपाही विदेशियों से लड़ते समय उन्हीं कारतूसों को खुशी के साथ अपने दांतों से काटते हुए में दिखाई दिये । साथ ही इसमें भी सन्देह नहीं कि सन् ५७ की क्रान्ति में भाग लेने वाले लाखों हिन्दू और मुसलमान ऐसे भी थे जिनके शस्त्र उठाने का मुख्य कारण यह था कि उन्हें अपना धर्मख़तरे में ।