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भारत में अंगरेज़ी राज

१६३० भारत म अंगरेजी राज हज़ार साल के अन्दर जिस मेल और प्रेम के साथ हिन्दू और मुसलमान इस देश में रहते रहे उसकी मिसाल संसार के किसी भी दूसरे देश में मिलना कठिन है । किन्तु साथ ही हमारे दैनिक और मानसिक जीवन में बह टक्करें भी मौजूद थीं जिन्होंने कवीर को ‘आपस में दोड लरि लरि ,” और नानक को दावा राम रहीम कर लड़दे बेईमान,” कहने पर मजबूर किया। जैसा हम दिखला चुके हैं, इन टक्करों को हमारे क़ौमी जीवन से और उनके कारों को हमारे दिल से मिटाने के महान प्रयत्न भी जारी थे। किन्तु हमें बहुत सन्देह है कि सन् १७ के जिस पहलू का इस ज़िक्र कर रहे हैं, सफलता के बाद, वह पहलू इन समन्वयात्मक प्रयनों में सहायक होता था भविष्य के लिए इन टक्करों की सम्भावना को और अधिक बढ़ा देता । बहुत सम्भव है कि इन टक्करों का नतीजा अन्त में अच्छा ही होता और ये टक्करें हमें श्री सार्वजनिक सत्य की चट्टान तक पहुँचा दे । सम्भव है कि सन् १७५७ से १८५७ तक के अनुभवों के के कारण इन टक्करों में से अनेक कठोर और नकवर पैदा हो जाते, और यह श्रत्यन्त जटिल समस्या सुन्दरता पूर्वक सदा के लिए हल हो जातीकम से कम यदि सन् ५७ का महान प्रयस्त सफल हों गया होता तो फिर किसी तीसरी ताक़त को अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए इस समस्या को जान बूझ कर और श्रधिक जटिल बंना देने का मौका न मिलता । किन्तु वे टक्करे देश को किस ओर से जांत इस सब में कितना समय लगताऔर कवीर और अकबर के । ।